उलूक टाइम्स: रस्सी
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शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

बदलना चाहता है कोई अगर कुछ उसके बदलने से पहले बदलने को ही बदल दो

इससे पहले
कोई समझले
क्या कह
दिया है
विषय ही
बदल दो

समय
रुकता नहीं है
सब जानते हैं
समझते नहीं हैं
मौका देखकर
समय को
ही बदल दो

शातिर कभी
खून
करता नहीं है
खून ही
बदल देता है
सीख लो अगर
सीख सको
मत करो खून
बस खून
ही बदल दो

समय
सिखाता है
परिवर्तन भी
लाता है

सुपारी
देने वाले
बेवकूफ
होते हैं

सुधारवादी
बैठे बैठे
सामने वालों का
बिना कुछ कहे
खून सुखाता है

जरूरी है
कत्ल कर देना
सम्वेदनाओं का

बहुत वेदना देती हैं

सामने सामने
आँखों आँखों में
कह भी
दिया जाता है

कितना
बेवकूफ होता है
मार खाता है
फिर भी अपनों
के पास फिर से
सुखाने
चला आता है

उसका देखना
ही बदल दो

बहुत ही
अपना होता है
पुचकारता
चला जाता है
फाँसी कभी
नहीं होने देगा
खड़े खड़े
समझाता है

लटका दिया
गया है जमीर
‘उलूक’
उसका
बिना पूछे
किसी से

अखबार का
एक समाचार
सुबह का
ये बताता है

अखबार का
कुछ नहीं
कर पायेगा
कहीं कुछ भी
पता होता है

बदल दो कुछ

कोई रस्सी
ही सही
रस्सी
बदल दो ।

चित्र साभार: Dreamstime.com

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

धोबी होने की कोशिश मत कर बाज आ गधा भी नहीं रह पायेगा समझ जा


चल 
अपनी सारी बातें
मुझे बता 

मेरी बातें 
समझ में तेरे नहीं आ पायेंगी 
ऐसी बातों को सुनकर 
करेगा भी क्या 
रहने दे हटा

बैठा रह घास खा 
जुगाली कर पूँछ हिला 

वैसे भी 
धोबी और गधे का रिश्ता 
होता है 
एक बहुत नाजुक रिश्ता 

माल मिलेगा मलाईदार चिंता मत कर 
जम कर सामान उठा इधर से उधर ले जा 
जो कहा जाये कहने से पहले समझ जा 

धोबी क्या करना चाह रहा है 
उस पर ध्यान मत लगा
दिये गये काम को मन लगा कर 
कम से कम समय में निपटा 

पूरा होते ही
खुद 
अपनी रस्सी का फंदा अपने गले में लटका 

खूँटे से बंध कर 
नियत व्यास का घेरा बना चक्कर लगा घनचक्कर हो जा 
दिमाग की बत्ती जलाने की बात सोच में भी मत ला 

राबर्ट फ्रोस्ट मत बन 
मील के पत्थर लम्बी दूरी 
सोने से पहले और उठने के बाद की
लम्बी दौड़ 
को
धोबी की 
सोच में रहने दे 
गोबर कर दुलत्ती झाड़ धूल उड़ा 

धोबी की इच्छा आकाँक्षाओं को 
अपने सपने में भूल कर भी मत ला 

याद रख 
धोबी होने की कोशिश करेगा 
गधा भी नहीं रहेगा 
समझ जा ।

चित्र साभार: www.momjunction.com/

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

सभी के होते हैं रिश्ते सभी बनाना चाहते हैं


कंकड़
पत्थर
की ढेरी के
एक कंकड़
जैसे हो जाते हैं

रिश्ते
साथ रहते हुऐ भी
अलग हो जाते हैं

जब
इच्छा होती है
इस ढेरी से
उस ढेरी में
डाल दिये जाते हैं

पता
चल जाता है
आकार प्रकार
और रंग से

अभी
तक कहीं
और थे
अभी
अभी कहीं
और
पाये जाते हैं

रस्सी
नहीं होते हैं
गांठो में नहीं
बांधे जाते है

खोलने
बांधने के
मौके जबकि
बहुत बार
सामने से आते हैं

मिलने जुलने
से लेकर
बिछोह
होने तक
रिश्ते गरम
से होते हुऐ
कब ठंडे
हो जाते हैं

रिश्ते
आसमान से
गिरते जल की
ऐसी बूँदे भी
हो सकते हैं

गिरते गिरते ही
एक दूसरे में
जो आत्मसात
हो जाते हैं

पानी में से
पानी को
अलग कर पाना
अभी तक यहाँ
कहीं भी नहीं
सिखाते हैं

अपनी अपनी
की धुन में
नाचती अपनी
जिंदगी में

कब
बूँद बन कर
आसमान
से नीचे की ओर
गिरते हुऐ आते हैं

किसी
दूसरी बूंद में
मिलने से पहले ही
कब पत्थर हो जाते हैं

जानते हैं
समझते हैं
पर समझना ही
कहाँ चाहते हैं

एक ढेरी के
कंकड़ो
में गिरकर
इधर से उधर
लुढ़कते लुढ़कते
किसी दूसरी ढेरी
में पहुँच जाते है

रिश्ते
पानी की बूँदें
नहीं हो पाते हैं ।