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रविवार, 25 अगस्त 2019

कुछ भी लिख ‘उलूक’ मगर लिख रोज लिख हर समय लिख किस लिये कोई दिन बिना कुछ लिखे ही बितारा



कल का 
लिखा

क्या
बिक गया
सारा

आज
फिर से
उसी पर

किसलिये

वही कुछ
लिख लारा
दुबारा

देख

वो
लिख लारा
घड़ियाँ सारी

समय
सबको

जो 
आज
सबका
दिखारा

समझ

पीठ में
लगी चाबियाँ
अपनी
टिक टिक की

दूर कहीं

कहाँ
जा कर
छुपारा

क्यों नहीं

पूछ
कर ही
लिख लेता
किसी से 

कुछ

उसी 

के
हिसाब का

ऐसा
सोच
क्यों नहीं
पारा

सोच

नहीं
सोचा जारा
जिससे

वो
लिखना छोड़

कुछ
पढ़ने को
चला आरा

बता

समझ
में आना

किस ने
कह दिया
जरूरी है

नहीं
आरा
समझ में

तो
नहीं आरा
बतारा

और

जो
समझ भी
जारा
कुछ

कुछ
कहने में
फिर भी
अगर
हिचकिचारा

कौन सा
कुछ

अजब गजब
जो
क्या हो जारा

एक
कविता कहानी साहित्य
के
पन्नों के
थैले बनारा

दूसरा

बकवास
की
मूँगफली के
छिलके
ला ला
कर
फैलारा

तीसरा

इसकी
टोपी
उसके सिर
में
रख कर
के
आरा

सबसे बड़ा

दीवार
चढ़कर
उतरकर
बड़ी खबर
पकारा

उसके
साथ खड़ा

असली
खबर को

देश दुनियाँ
की
फैली
घास बतारा

‘उलूक’

कविता
कहानियों
के बीच

बकवास
अपनी

कई
सालों से
पकारा

सिरफिरा
समझ रा
दिमागदारों
को
पढ़ारा

निचोड़
इन
सब का
अंत में

लिख कर
ये
रख जारा

कुछ
भी लिख

रोज
कुछ
लिखना
जरूरी है

मत कहना
नहीं
बताया

कम कम
लिखने
वालों
का
चिट्ठा दर्जा

आगे
आते आते

पीछे
कहीं
रह जारा।

चित्र साभार: https://www.amazon.in/dp/159020042X?tag=5books-21

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

सारा सब कुछ अभी ही लिख देगा क्या माना लिख भी लेगा तो आगे फिर लिखने के लिये कुछ भी नहीं बचेगा क्या ?


रहने भी दे
हमेशा
खुद से ही
बहस मत
कर लिया कर

कुछ औरों का
लिखना भी
कभी तो देख
भी लिया कर

अपना अपना
भी लिख रहे हैं
लिखने वाले

 तू भी कभी
कुछ अपना ही
लिख लिया कर

इधर उधर
देखना
थोड़ी देर के
लिये ही सही

कभी आँखें ही
कुछ देर
के लिये सही
बन्द भी
कर दिया कर

कभी कुछ नहीं तो

हो भी
सकने वाला
एक सपना ही
लिख दिया कर

लिखे हुऐ कुछ में
समय कितनों के
लिखे में दिखता है

ये भी कभी कुछ
देख लिया कर

हमेशा
घड़ी देखकर
ही लिखेगा क्या

कभी चाँद तारे
भी देख लिया कर

सब का लिखा
घड़ी नहीं होता है

बता पायेगा क्या
कितने बज रहे हैं
अपने लिखे हुऐ
को ही देख कर कभी

रोज का ना सही
कभी किसी जमाने
के लिखे को
देखकर ही

समय उस समय
का बता दिया कर

घड़ी पर
लिखने वाले
बहुत होते हैं
घड़ी घड़ी
लिखने वाले
घड़ी लिख लें
जरूरी नहीं

कभी
किसी दिन
किसी की
घड़ी ना सही

घड़ी की
टिक टिक
पर ही कुछ
कह दिया कर

समय
सच होता है
सच लिखने
वाले को
समय दूर
से ही सलाम
कर देता है

समय
लिखने वाले
और समय
पढ़ने वाले
होते तो हैं
मगर
थोड़े से होते हैं

कभी समय
समझने वालों
को समझकर

समय पर
मुँह अँधेरे
भी उठ
लिया कर

अपनी
नब्ज अपने
हाथ में होती है

सब नाप
रहे होते हैं
थोड़े से
कुछ होते हैं
नब्ज दूसरों
की नापने वाले

उन्हें डाक्टर कहते हैं

कभी
किसी दिन
किसी डाक्टर
का आला ही
पकड़ लिया कर

‘उलूक’ देखने
सुनने लिखने
तक ठीक है
हर समय
फेंकना
ठीक नहीं है

औरों
को भी कभी
कुछ समय
के लिये
समय ही सही
फेंकने दिया कर ।

चित्र साभार: http://www.toonvectors.com

बुधवार, 23 मई 2012

सुन्दर घड़ीसाज

चंदू वैसे हर
कोण से ऎलर्ट
नजर आता है
हर काम में
अपने को
परफेक्ट
वो बनाता है
मायूस होते
हुवे मैने
उसे कभी
भी नहीं पाया
समय के पाबंद
ने कल जब
अपनी घड़ी को
चलते हुवे
नहीं पाया
हाथ झटकते
हुवे तब थोड़ा
सा वो झल्लाया
पर आज सु
बह फिर से
आफिस में
सीटी बजाते
हुवे दाखिल हुवा
जैसे कल के दिन
उसकी सेहत
को रत्ती भर
भी कुछ
नहीं हुआ
घड़ी उसकी
उसकी अपनी
कलाई पर ही
नजर आ रही थी
पर टिक टिक
उसकी आज
एक बिल्कुल
नई कहानी
सुना रही थी
महिलाओं की 

ओर मुखातिब
हो कर भाई
ने बतलाया
सैल बदलने
घड़ी की
दुकान पर
कल शाम
जब वो आया
एक सुंदर
सुघड़
मोहतरमा
को काम
करते वहाँ पाया
घड़ी को बड़ी
नजाकत से
पेचकस से
खोल कर
उसने सैल
को जब से
अंदर को
सरकाया
जैसे जैसे
पूरा वाकया
सुनाता
चला गया
घड़ीसाज
के काम का
वो कायल
होता गया
चलती है
या रुकी है
अब नहीं
देखने वाला है
अपने घर की
सारी घड़ियों
के सैल एक
एक करके
बदलने वाला है
महिलायें अभी
तक चुपचाप
चंदू को सुनती
जा रही थी
बस थोड़ा
थोड़ा बीच
बीच में कभी
मुस्कुरा रही थी
बोली इस से
पहले हमारे
पतिदेव लोग
दुकान का
पता चला लेंगे
हम लोग भी
अपने घर की
सारी घड़ियों
के सारे सैल
आज ही
जा कर के
बदलवा
डालेंगे ।